झारखंड में निजी डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में देंगे सेवा, हेल्थ सेक्टर में पहली बार होने जा रहा बड़ा बदलाव

रांची। झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां निजी डॉक्टरों को सरकारी अस्पतालों में सेवा देने की अनुमति दी गई है। डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहे राज्य में यह एक सराहनीय और नवाचारी कदम माना जा रहा है।
स्वास्थ्य विभाग ने यह व्यवस्था लागू कर सरकारी अस्पतालों में बेहतर चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है।
झारखंड सरकार की यह पहल राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकती है। यदि आधारभूत संरचनाएं मजबूत की जाएं और योजना को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो यह मॉडल देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है।
राज्य के कई जिलों में चल रहा है नवाचार
रांची, कोडरमा, साहेबगंज, रामगढ़, हजारीबाग सहित कई जिलों में यह व्यवस्था शुरू कर दी गई है। कई अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के चयन की प्रक्रिया चल रही है। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष के अंत तक सभी सदर अस्पतालों और पांच मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशलिस्ट सेवाएं उपलब्ध करा दी जाएं।
सारी नियुक्ति आयुष्मान योजना के अंतर्गत
निजी डॉक्टरों की यह नियुक्ति सिर्फ आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत की जा रही है। अस्पताल को मिलने वाली इलाज की राशि का 30 प्रतिशत डॉक्टर को भुगतान किया जा रहा है। ओपीडी के लिए भी मरीजों की संख्या के अनुसार भुगतान किया जा रहा है। हालांकि, यह सुविधा अभी केवल कुछ अस्पतालों में लागू है।
प्रोत्साहन के साथ मिल रहा है भुगतान
सरकारी अस्पतालों में सेवा देने वाले निजी डॉक्टरों को प्रति ओपीडी मरीज पर 600 से 800 रुपये दिए जा रहे हैं। वहीं, आइपीडी और सर्जरी के मामलों में डॉक्टरों को शहर के अनुसार भुगतान किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, रांची में इलाज करने वाले डॉक्टर को एक लाख के पैकेज पर 25 हजार रुपये मिलते हैं, जबकि वही इलाज साहेबगंज जैसे दूरवर्ती इलाके में करने पर डॉक्टर को 34 हजार रुपये दिए जाते हैं। इससे दूर-दराज के क्षेत्रों में भी विशेषज्ञ सेवा उपलब्ध कराने की कोशिश हो रही है।
निजी डॉक्टरों में सेवा देने की बढ़ती इच्छा
सरकार की इस पहल के बाद कई निजी डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में सेवा देने की इच्छा जता रहे हैं। राजधानी रांची के विभिन्न प्रखंडों जैसे रातू, बुंडू, नामकुम और ओरमांझी में डॉक्टरों की नियुक्ति की तैयारी चल रही है। डोरंडा शहरी स्वास्थ्य केंद्र में भी निजी डॉक्टर को आयुष्मान योजना के तहत तैनात किया जा रहा है।
राष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रत्येक 1000 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए, लेकिन झारखंड में 5500 व्यक्तियों पर केवल एक डॉक्टर उपलब्ध है। राज्य को लगभग 37 हजार डॉक्टरों की जरूरत है, जबकि वर्तमान में सिर्फ सात हजार डॉक्टर कार्यरत हैं। इसी तरह, 1.31 लाख बेड की आवश्यकता के मुकाबले केवल 36 हजार बेड ही उपलब्ध हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए अब निजी और सरकारी डॉक्टर मिलकर मरीजों की सेवा करेंगे। खासकर गरीब और दूरस्थ क्षेत्रों के मरीजों को विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवाएं मिलने का रास्ता खुल गया है।
अजय कुमार सिंह, अपर मुख्य सचिव (स्वास्थ्य)
चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं
यह पहल सराहनीय है, लेकिन कई ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे जिलों में आधारभूत संरचना की कमी अब भी एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के तौर पर, रामगढ़ सदर अस्पताल में न्यूरो सर्जन की नियुक्ति की गई है, लेकिन वहां न तो न्यूरो एनेस्थेटिस्ट उपलब्ध हैं, न ही सर्जरी के लिए उपयुक्त सुविधा। इस वजह से काम बाधित हो रहा है। सरकार इन समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयासरत है।